Monika garg

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लेखनी कहानी -13-May-2022#नान स्टाप चैलेंज # लिखे जो खत तुझे

सोनू ! मैथ्स का होमवर्क हो गया ?" रसोई से निकलकर सोनू के स्टडी रुम में जाती हुई पलक की आवाज ड्राइंग रुम में बैठकर आराम से अखबार पढ़ रहे रोहन से बेसाख्ता टकरा गई ।

"बस होने वाला है, मम्मी ।" जवाब में उधर से आती हुई सोनू की आवाज ने भी रोहन के कानों को छुआ ।

"पता नहीं, कितनी देर से एक ही होमवर्क में उलझी हुई है ।" हर घर की तरह एक चिन्तित माँ की आसमान छूती फिक्र यहीं पर विराम कहाँ लेने वाली थी,"और आपको तो कोई मतलब नहीं कि जरा खुद बेटी के होमवर्क में उसकी मदद कर दें ।" अब तक के प्रश्नोत्तरी का तो रोहन अनचाहा श्रोता था लेकिन इस बार लक्ष्य में वह  सीधे-सीधे आ चुका था ।

"मुझसे कुछ कह रही हो,क्या ?" चुप रहने से बात बिगड़ सकती थी, इसलिये पत्नी की बात खत्म होते ही उसकी जुबान ने फ़ौरन जवाब देकर उसका साथ दिया ।

"नहीं, मैं तो इन बरतनों से बात कर रही थी । आपसे भला कुछ कैसे कह सकती हूँ ? आप तो शौक से सुबह के अखबार को रात तक पढ़ते रहिये, जब तक इसका कोना-कोना बासी न हो जाये ।" रसोईघर से बरतनों के धोने का संगीत अचानक से विविध भारती की जगह रैप बीट में बदल गया था ।

समाचार-पत्र की दुनिया को एक झटके में अलविदा कह रोहन कक्षा सात में पढ़ने वाली अपनी बेटी सोनू के स्टडी रूम की ओर चल पड़ा । स्टडी टेबल पर पूरी तल्लीनता से वह बहुत तेजी से नोटबुक में कोई काम कर रही थी । उसने मन ही मन कहा कि काम तो यह कर ही रही है, फिर भी खामख्वाह उसे डाँट पड़ रही है । उसके बिल्कुल नजदीक पहुँच कर रोहन ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा," क्या चल रहा है, बेटा?" लेकिन  उसे देखते ही सोनू ने नोटबुक झट से बंद कर दिया ।

"अरे ! क्या हो गया? सवाल नहीं लग रहें है क्या और नहीं भी लग रहें है तो छिपा क्यों रही हो ?"

रोहन उसके पास कुर्सी खींचकर वहीं बैठ गया और टेबल पर पड़ी दूसरी कॉपी-किताब पलटने लगा ।

अरे! मैथ्स की वर्कबुक तो टेबल पर किनारे पड़ी है तो यह बच्ची अब तक कर क्या रही थी? रोहन का दिमाग भी चकराने लगा । रोहन ने उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा । उसका चेहरा अचानक से पीला पड़ गया था, जैसे उसकी गलती पकड़ गई हो । उसके हाथ से मैथ्स की वर्कबुक लगभग अपनी ओर खींचते हुये, जैसे कुछ अनचाहा छिपाना चाह रही हो,वापस लेते हुये वह बहुत धीमी आवाज में बोली," बस एक-दो सवाल रह गये हैं, पापा, अभी कर लेती हूँ।" इस अप्रत्याशित धीमी आवाज का मायने यह था कि किचन में काम कर रही उसकी मम्मी तक यह बात न पहुँचे ।

रोहन ने  भी उतनी ही धीमी आवाज में उसके कान में बोला, "मैथ्स बहुत डिफिकल्ट सब्जेक्ट है, न ? मुझे भी बहुत पकाऊ लगता है । उसकी बात सुनकर उस मासूम के पीले पड़ आये चेहरे पर हल्की सी हँसी खिल आई । उसे हँसते देख वो भी हँस पड़ा ।

"चलो, मैं तुम्हारी हेल्प कर देता हूँ । लेकिन, बेटा ! अगर तुमसे नहीं हो रहा था तो मुझसे बताना चाहिए था, मैं करा देता । यूँ ही समय बरबाद नहीं करना चाहिये ।" रोहन ने उसकी नन्हीं ठोड़ी को धीमे से ऊपर उठाया ।

"पापा, मैं टाइम बरबाद नहीं कर रही थी ।"

"तो क्या कर रही थी ?"

अभी वह बात का वह जवाब देती, तब तक पलक भी वहाँ आ चुकी था और उसने शायद  बाप-बेटी की बात को काफी हद तक सुन भी लिया था ।

"देख लिया न आपने कि कैसे टाइम बरबाद किया जा रहा है । मैथ्स की वर्कबुक अलग पड़ी है और हमसे कहा जा रहा है कि होमवर्क बस होने वाला है । कामचोरी के बाद अब यह झूठ भी बोलने लगी है । ऐसे बच्चे जिंदगी में कभी सफल नहीं हो सकते ।" पलक  ने सोनू के भविष्य का पूरा खाँचा एक झटके में खड़ा कर दिया था । रोहन समझ रहा था कि आजकल की शिक्षा व्यवस्था में बच्चों को सही मुकाम पाने के लिये बहुत मेहनत करने की ज़रूरत है, इसीलिए माँ होने के नाते पलक परेशान है, लेकिन जो जिंदगी अभी शुरू भी नहीं हुई है, उसे हमेशा के लिये अभी से असफलता के खाँचे में फिट कर देना रोहन को अच्छा नहीं लग रहा था । हाँ, अलबत्ता सोनू का झूठ बोलना भी उसे पसन्द नहीं आया था । लेकिन फिर भी वह इस बात का पक्षधर था कि सोनू को अपनी बात रखने का मौका अवश्य मिलना चाहिये, क्योंकि उसकी याददाश्त में उसने पहले कभी झूठ बोला हो, ऐसा उसे याद नहीं और यदि अभी इसे सुधारा नहीं गया, तो यह सिलसिला चल पड़ेगा । इसलिए रोहन ने हाथ के ईशारे से पलक को रोकते हुये उस किशोर होती बच्ची से पूछा,“तो आखिर इतनी देर से तुम क्या कर रही थी ? यह तो टाइम बरबाद करना ही हुआ, न ।" पलक के मूड को देखते हुये रोहन कीआवाज भी थोड़ी सपाट हो चली थी ।

"पापा,मैं टाइम बरबाद नहीं कर रही थी।"

"तो क्या कर रहीं थी?" चिन्ता और उत्सुकता का मिला-जुला रंग फिर से रोहन की  आवाज में भरने लगा था ।

रोहन के सवाल के क्रम में बिना कुछ बोले उसने अभी-अभी बंद की गई नोटबुक को खोलकर रोहन की तरफ धीमे से खिसका दिया ।

"अरे! यह तो चिट्ठी लिखी गई है!!" वह चौंका । चौंकने की वजह यह थी कि चिट्ठी तो अब हड़प्पा सभ्यता की जैसी चीज हो गयी हो और ईमेल, व्हाट्सप्प के जमाने के आजकल के बच्चे चिट्ठी लिखें तो यह आठवां अजूबा ही तो माना जायेगा ।

"देख लिया, न । मैथ्स करने की जगह चिट्ठी लिखी जा रही है । वाह! टाइम बरबाद करना कोई इससे सीखे ।"

एक कर्न्सन्ड मदर की झुंझलाहट फिर से उफान लेने लगी थी । उधर सोनू का चेहरा पल-पल भयातुर होता जा रहा था ।

तब तक रोहन चिट्ठी की शुरुआती चंद लाइनें पढ़ चुका था,"अरे! रुको तो । पता है ये चिट्ठी किसको लिखी गयी है ।" आश्चर्य से भरी रोहन आवाज लगभग हल्की सी चीख में बदल गई थी ।

"किसको ?" पलक के स्वर में अभी भी तल्खी थी । रोहन ने खामोशी से नोटबुक उसकी तरफ बढ़ा दिया ।

चिट्ठी नानी को लिखी गई थी । कोरे सफेद कागज पर नीले मोती जैसे अक्षरों में एक नातिन ने अपना प्यार अपनी नानी के लिये उड़ेल दिया था । साधारण सी भाषा में लिखा था,"नानी ! आपकी सुनने की प्रॉब्लम होने के कारण आपसे फोन पर बात नहीं हो पाती और ईमेल, व्हाट्सप्प आप यूज नहीं करती । पिछली गर्मियों में आपके यहाँ जब मैं आई थी तो आपने अपने टिन के बक्से में सहेज कर रखी हुई मम्मी, मौसी, मामा और पता नहीं किसकी-किसकी बरसों पुरानी चिट्ठियों को दिखाया था और यह कहते-कहते आपकी आँखें भर आईं थी कि अब किसी की कोई चिट्ठी नहीं आती । आपका यह अनमोल खजाना भरा रहे, इसके लिये आगे से मैं आपको अपनी टूटी-फूटी भाषा में नियम से हर माह चिट्ठी लिखूंगी । नानी की सेहत से जुड़ी बातें, पिछली गर्मिंयों की छुट्टी में उनके साथ बिताये गये दिन, उनके हाथ के बने अचार-मुरब्बे के चटखारे लेती हुई चिट्ठी जैसे-जैसे आगे बढ़ती जा रही थी, उसे पढ़ते हुये पलक की आँखे नम होती जा रहीं थी और फिर वे अचानक से सावन-भादो की तरह बरस पड़ीं ।

"अरे, क्या हो गया?" रोहन उठ खड़ा हुआ और अपनी कुर्सी पर उसे बैठा दिया । उसने नोटबुक रोहन की तरफ बढ़ा दिया । जहाँ से पढ़ते-पढ़ते उसका गला भर आया था, वहाँ से रोहन ने आगे पढ़ना शुरू किया। लिखा था “आपने मुझे बताया था कि मम्मी को तानपूरा सीखने का बहुत शौक था, लेकिन उस समय पैसे की कमी होने के कारण उनका वह शौक पूरा नहीं हो सका । नानी ! मेरी गुल्लक में बहुत सारे पैसे जमा हो चुके हैं । अगले महीने उनके जन्मदिन पर पापा के साथ जाकर मैं उनके लिये तानपूरा खरीदकर लाउँगी ताकि वो अपना बचपन का अरमान पूरा कर सकें । लेकिन उन्हें बताइयेगा मत, यह सरप्राइज है ।''

पलक बच्ची की तरह रोये जा रही थी और  सोनू माँ की तरह उसे चुप करा रही थी । आउटडेटेड मानी जानी वाली चिट्ठी ने डाकखाने का सफर किये बिना अपना संदेश पहुँचा दिया था ।

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7 Comments

Mithi . S

24-Sep-2022 10:36 AM

अच्छी रचना 👌

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Pallavi

22-Sep-2022 09:19 PM

Beautiful

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Abeer

21-Sep-2022 07:43 PM

Bahut khub 👌

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